हे माँ ! दे मुझे वरदान ..
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे
तिमिराच्छादित हो निशा भले हम वे सहें
चंद्रमा अमा का लुप्त हो आकाश से तो क्या
हूँ चिर पुरातन, नित नया रहस्यमय बिंदु मैं
हूँ मानव ! ईश्वर का सृजन अग्नि शस्य हूँ मैं!
काट तिमिर क्रोड़ फोड़ तज कठिन कारा ,
नव सृजन निर्मित करूं निज कर से पुनः मैं !
हैं बल भुजाओं में वर शाश्वत शक्ति पीठ का
हे माँ ! दे मुझे वरदान ऐसा हूँ शिशु अबोध तेरा
कन्दराएँ फोड़ निर्झर सा बहूँ ऐसा वरदान दे !
चन्द्र सूर्य तारक समूह सृष्टि के कण कण पर
तेरा है सहज अधिकार सर्वत्र हे माँ स्वयं प्रभा
ब्रह्मांड की सृजन दात्री हैं मेरी माँ अंबे भवानी
तुझ से ही प्रलय या नव विहान होते साकार !
हर सर्जन विसर्जन तेरी भृकुटी का हैं विलास I
अमावस्या की कालिमा खंडित ये तेरी कृपा
दीपकों से जगमगा उठे घनी अंधियारी निशा
धर परम शुभ मंगल स्वरूप महालक्ष्मी प्रकाशित
आतीं हर घर कृपा का अमृत रस बिखरातीं!
श्री राम, बुध्ध, महावीर नानक देव ऋषि गण
तेरी कृपा याचते दीप पर्व उत्सव सभी मानते
हो शुभ मंगल सदा सुख धरती के जन जन पर
हों शान्ति पूर्ण अस्तित्त्व ये कर बध्ध अंजलि
लिए माँ , हम शुभ आशिष तुझ से मांगते हैं !
- लावण्या दीपक शाह
2012 ओहायो , यु। एस ए I