Quantcast
Channel: लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`
Viewing all articles
Browse latest Browse all 117

माँ धरती प्यारी

$
0
0
कितनी सुँदर अहा, कितनी प्यारी,
ओ सुकुमारी, मैँ जाऊँ बलिहारी
नभचर, थलचर,जलचर सारे,
जीव अनेक से शोभित है सारी,
करेँ क्रीडा कल्लोल, नित आँगन मेँ,
माँ धरती तू हरएक से न्यारी !
अगर सुनूँ मैँ ध्यान लगाकर,
भूल ही जाऊँ विपदा,हर भारी,
तू ही मात, पिता भी तू हे,
भ्राता बँधु, परम सखा हमारी !
 [Frangipani+Flowers.jpg]

दिवा -स्वप्न
~~~~~~~~~~~~
बचपन कोमल फूलोँ जैसा,
परीयोँ के सँग जैसे हो सैर,
नर्म धूप से बाग बगीचे खिलेँ
क्यारीयोँ मेँ लता पुष्पोँ की बेल
मधुमय हो सपनोँ से जगना,
नीड भरे पँछीयोँ के कलरव से
जल क्रीडा करते खगवृँद उडेँ
कँवल पुष्पोँ,पे मकरँद के ढेर!
जीवन हो मधुबन, कुँजन हो,
गुल्म लता, फल से बोझल होँ
आम्रमँजरी पे शुक पीक उडे,
घर बाहर सब, आनँद कानन हो!
कितना सुखमय लगता जीवन,
अगर स्वप्न सत्य मेँ परिणत हो!

तुहीन और तारे 
~~~~~ ~~~~~~ ~~~~ 
आसमाँ पे टिमटिमाते अनगिनत 
क्षितिज के एक छोर से दूजी ओर 
छोटे बड़े मंद या उद्दीप्त तारे !
जमीन पर हरी डूब पे बिछे हुए 
हर हरे पत्ते पर जो हैं सजीं हुईं 
भोर के धुंधलके में अवतरित धरा 
पर चुपचाप बिखरते तुहीन  कण !
देख उनको सोचती हूँ मैं मन ही मन 
क्यों इनका अस्त्तित्त्व, वसुंधरा पर ?
मनुज भी बिखरे हुए जहां चहुँ ओर 
माँ धरती के पट पर विपुल विविधत्ता 
दिखलाती प्रकृति अपना दिव्य रूप 
तृण पर, कण कण पर जलधि जल में !
हर लहर उठती, मिटती संग भाटा या 
ज्वार के संग कहती , श .... ना कर शोर !
-- लावण्या दीपक शाह 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 117

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>