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श्रीयंत्र रहस्यम

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~ श्रीयंत्र रहस्यम ~
ईश्वर एक हैं । सब जीवों को उन तक पहुँचने का रास्ता अलग हो सकता है। पर जो केंद्रबिंदु हैं, उसी से ये समस्त ब्रह्माण्ड उद्भव ले कर प्रकाशमान हुआ है।
ईश्वर की  परम ऊर्जा 'पराशक्ति 'हैं। माँ भगवती भव तरिणी हैं।वे शिवा भी हैं !
उन्हें कुछ मनुष्य 'श्री रासेश्वरी राधे महारानी 'बुलाता है तो कोई राम भक्त उस आदि पराशक्ति को ' सीता माई 'कहता है । कोई उस परम प्रकृति या ईश्वरीय ऊर्जा को '
 माता मरीयम 'कहता है। पर अन्त में, यदि जीव, आत्मा में समाये, अपने ईश्वर को श्र्ध्धा तथा विश्वास से भजेगा, तब प्रत्येक जीव,
 केंद्रस्थ ईश्वर के प्रति समर्पित हो पाएगा। व एकमात्र ' परम सत्य 'है उसे  पहचान पाएगा । वेदोक़्त सूत्र है “ एकम सत्य, विप्रा बहुधा वदंति “ -सच एक है ! अनुभव से या ज्ञान द्वारा जो, विशुद्ध तर्क द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं वे सभी इस एक सत्य को विविध प्रणाली से प्रतिपादित करते हैं। "अंग्रेज़ी में " Truth is One ☝️ those who experience or arrive at this conclusion with rationale mind know & interpret it in many different ways. "
        फरवरी माह , २०१९ में  "श्रीयंत्र "जिसे १ वर्ष के कठिन परिश्रम पश्चात, रिटायर्ड वैज्ञानिक विशेषज्ञ हमारे  एक मित्र, श्री रमाकांत जायसवाल भाईसाहब ने अमरीका में रहते हुए, रंगीन कांच के ३०० टुकड़ों को जोड़ कर, बड़ी श्रद्धा भक्ति पूर्वक १ वर्ष की मेहनत से इसे निर्मित किया। इसे 'स्टैन ग्लास 'विधा कहते हैं। मित्र मण्डली के मध्य, इस कलाकृति का विधिवत उदघाटन हुआ। मुझ से आग्रह किया गया कि, श्रीयंत्र पर मैं कुछ कहूँ। अतः मैंने रिसर्च कर यह जानकारियां एकत्रित की हैं, जिन्हें अब आगे  प्रस्तुत कर रही हूँ। 
श्रीयंत्र १२,००० हज़ार वर्षों से भी अधिक प्राचीन है।ऋग्वेद में श्रीयंत्र का उल्लेख है।
श्रीयंत्र की संरचना प्राचीन एवं पवित्र 'ज्यामितीय 'आधार पर है। मध्य युग में
जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य जी ने "सौंदर्यलहरी "  में माँ भगवते, पराशक्ति अम्बिका
 की स्तुति में श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी, शक्ति की उपासना करते हुए
 श्लोक लिखे हैं।
आधुनिक युग में श्रीअरविन्द जैसे मर्मज्ञ द्वारा 'श्रीयंत्र 'आराधना हुई है। 
श्रीयंत्र में, देवी ललिता, महिषासुर सुंदरी, महात्रिपुरसुँदरी,महयोगमाया, कामेश्वरी,
अम्बिका, देवी पराशक्ति, १६ वर्षीय षोडशी केंद्र में स्वयं विराजित हैं।
श्रीयंत्र के केंद्र को 'बिंदु 'कहते हैं।
बिंदु के मध्य में परमशिव एवं पराशक्ति संयुक्त स्वरूप में बिराजित हैं।
 श्रीयंत्र में ४३ त्रिकोण हैं। २८ मर्म स्थान हैं, २४ वे संधि स्थान हैं
जहां ३ रेखाएं मिलतीं हैं उसे संधि स्थान कहते हैं।
शाक्त व तंत्रोक्त उपासना विधि में श्रीयंत्र का सर्वोच्च स्थान है।
 श्रीयंत्र अखिल ब्रह्माण्ड = कॉसमॉस cosmos +
मानव = ह्यूमन Human + कुण्डलिनी  इन तीनों का स्वरूप है।  
श्रीयंत्र के लिए इमेज परिणाम

डॉ.हेन्स जैनी ने ऊंकार = प्रणव नाद का रिवर्स इंजीनीयरींग से ज्योमेट्रिकल
आकार में परिवर्तित करने का एक्सपेरीमेंट किया तब श्रीयंत्र की आकृति का
स्वरूप प्राप्त किया था।
वैज्ञानिक महाशय निकोला 'टैसला 'को श्रीयंत्र आकृति  अत्यंत तेज प्रकाश
 में दिखलाई दी थी जो वे बाद में समझे थे के यह "श्रीयंत्र "है। 
निकोला टेस्ला : एक महान वैज्ञानिक थे।  जन्म सं १८८५६  में तत्कालीन सर्बिया में
 हुआ।
 अपनी मातृभाषा सर्बो के साथ-साथ इंग्लिश, फ्रैंच, जर्मन जैसी आठ भाषाएं
 लिखने-पढ़ने और बोलने लगे थे। गणित-विज्ञान में तो उनकी विशेषज्ञता थी।
उन्होंने आस्ट्रिया के ग्रेज स्थित पॉलिटेक्निक संस्थान से
'इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विषय में उच्च शिक्षा ग्रहण की थी। 

अल्टरनेट करेंट (एसी) का इस्तेमाल व्यवहारिक बनाकर
 धरती के कोने-कोने तक बिजली पहुंचाने वाले निकोला टेस्ला थे। 
उनके द्वारा विकसित किए गए एसी ट्रांसफॉर्मर और एसी मोटर ने
 जैसे बिजली की उपयोगिता को नए पंख दे दिए थे।
 बिना इनके हम औद्योगिक क्रांति की कल्पना नहीं कर सकते।
टेस्ला ने इसके बाद ‘टेस्ला क्वॉइल’ का आविष्कार किया।
यह ऐसी खोज थी जिसका इस्तेमाल एक्स रे से लेकर
वायरलेस कम्यूनिकेशन तक में हुआ।
टेसला  वेदांत की वैज्ञानिक व्याख्या करना चाहते थे।  
निकोला टेस्ला के कुछ आलेखों में ‘आकाश’ और ‘प्राण’ जैसे
संस्कृत शब्द मिलते हैं और कहा जाता है कि अमेरिका में
उनकी स्वामी विवेकानंद से  मुलाकात हुई थी।
स्वामी विवेकानंद लिखते हैं ~~
‘मिस्टर टेस्ला सोचते हैं कि वे गणितीय सूत्रों के जरिए
बल और पदार्थ का ऊर्जा में  रूपांतरण साबित कर सकते हैं।
मैं अगले हफ्ते उनसे मिलकर उनका यह नया गणितीय प्रयोग
देखना चाहता हूं " -- (विवेकानंद रचनावली, वॉल्यूम – V)
विवेकानंद इसी पत्र में आगे कहते हैं कि, "टेस्ला का यह प्रयोग
वेदांत की वैज्ञानिक जड़ों को साबित कर देगा जिनके मुताबिक
यह पूरा विश्व एक अनंत ऊर्जा का रूपांतरण है। "
स्वामी विवेकानंद ने एक पत्र में लिखा है कि "यदि टेस्ला
अपने प्रयोग में कामयाब हो जाते हैं  तो वेदांत की
वैज्ञानिक जड़ों की पुष्टि हो जाएगी। "
Swami #Vivekananda, late in the year l895 wrote in a letter to an English friend, "Mr. Tesla thinks he can demonstrate mathematicallythat force and matter are reducible topotential energy. I am to go and see him next weekto get this new mathematical demonstration.In that case the Vedantic cosmoloqy will be placed on the surest of foundations. I am working a good deal now upon the cosmology and eschatology of the Vedanta. I clearly see their perfect union with modern science,and the elucidation of the one will be followed by that of the other." (Complete Works, Vol. V, Fifth Edition, 1347, p. 77).Here Swamiji uses the terms force and matterfor the Sanskrit terms " Prana " and " Akasha "   
एक बार एक मित्र ने दक्षिण भारत के एक प्राचीन पंदिर की
स्थापत्य कला के चित्र 
में ग्रेनाइट के अत्यंत चमकीले खम्भों को देखते हुए
 आश्चर्य जतलाते हुए पूछा 'अरे घोर 
आस्चर्य है !
इन्हें आधुनिक उपकरणों के अभाव में,
प्राचील काल में किस तरह  
इतना चमकीला पोलिश किया होगा ?'
 मेरा उत्तर था, "भारतवर्ष की भूमि पर हमारे  
ऋषि मुनियों ने
'श्रीयंत्र "के दर्शन कर उसकी आकृति को समझाया था
तब ग्रेनाईट को 
पोलिश करना कौन सा मुश्किल कार्य है ! "
 हमारे प्राचीन वांग्मय में उल्लेख है कि, 
सदा शिवशंकर ने 'श्रीयंत्र ~ रहस्यम 'माँ पार्वती जी को समझाया था।
दक्षिण भारत में 
ऋषि अगस्त्य को महाविष्णु ने हयग्रीव अवतार स्वरूप में
 तथा योगाचार्य पतंजलि को 
शिवजी ने श्रीयंत्र रहस्य साधना का रहस्य
समझाया था। कहते हैं "योग साधना की 
उच्चावस्था में,
माँ पराशक्ति, "श्रीयंत्र स्वरूप "के दर्शन करवा कर, साधक को मुक्ति 
प्रदान करतीं हैं। श्रीयंत्र साधक को केंद्र से ब्रह्माण्ड की दिशा में ले चलते हुए,
आत्मज्ञान 
के प्रकाशित द्वार से आगे ले चलकर परमशिव से
 साक्षात्कार करवातीं हैं। 
श्रीयंत्र का संक्षिप्त मूल मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं पूरा मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमल कमलालायै प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं।ॐ महालक्ष्म्यै नमः। 
श्रीयंत्र कामाक्षी मंदिर, मंगदु, चेन्नई में विराजित है।काली मंदिर जयपुर में है। तिरुपती बालाजी मंदिर, तिरुपती में है। कलिकम्बल मंदिर, चेन्नई  में है।  
निमिशम्बा मंदिर, श्रीरंगपत्तन, मैसूर में विराजमान है। श्रृंगेरी मठ में शंकराचार्य ने
प्रथम श्रीयंत्र की स्थापना की थी। श्रीयंत्र परमात्मा की साक्षात शक्ति है। 

महाविद्या = supreme knowledge है। विश्वमोहिनी, राजराजेश्वरी,
त्रिलोकसुन्दरी देवी पाश (noose), अंकुश ( goad )
 तथा धनुषबाणधारिणी हैं।

देवी की स्तुति का श्लोक ~
पाप हारिणीं देवी भुक्तिमुक्ति प्र्दायिनीम। अनंता विजयां शुद्धधाम शरण्यां शिवदाम शिवाम। 

बाइबल धर्म ग्रन्थ कहता है," In the begning was the WORD
and the WORD was GOD "
परन्तु प्रश्न उठता है कि "यह वर्ड - शब्द क्या था ? "उत्तर है "ॐ कार " !

ॐ 'अ ' =  व्यापक / all pervasive = spread everywhere 
 'उ ' = सूक्ष्म / minutest particle / law = नियम / intellect = बुद्धि / चेतना 

 'म ' = अनंत / infinite / अमर = immortal अविनाशी 
अ उ म के संयुक्त होने पर 'ॐ'  उभरता है।
ॐ कार expands into --> 52 = बावन मूलाक्षर 

प्रश्न : अक्षर क्या है ? जो अविनाशी है।that which never ceases - 
प्रश्न : क्षर क्या है ? वह जो क्षण क्षण झरता या समाप्त होता रहता है।
That which is becoming   less - like our human life
- every second. अक्षर = अविनाशी हैं। that which will remain
 constant, always be there - is - Alphabets अक्षर !


श्वेतेश्वरा उपनिषद, ब्रह्माण्ड पुराण महाललिता त्रिपुरसुन्दरी का रहस्य समझते कहता है कि,
शिव + शक्ति = संयुक्त यंत्र को "नवयोनि मन्त्र "भी कहते हैं।
 नवयोनि = जिसमें ४ उर्ध्वगामी त्रिकोण शिव के प्रतीक हैं।
 ५  अधोगामी त्रिकोण देवी के प्रतीक हैं। श्रीयंत्र के मध्य में स्थित 

बिंदु = central dot के केंद्र में शिव, शिवा संयुक्त स्वरूप में विराजित हैं।
श्रीयंत्र के लिए इमेज परिणाम
 श्रीयंत्र ध्यान में साधक की चेतना को केंद्रित करने में सहायक होता है।
 ध्यान से व्यक्ति में दया करुणा,सहानुभूति, प्रेम, सत्य के प्रति आग्रह,
सत्याचरण, सु - स्वास्थ्य इत्यादि सद्गुणों का विकास होता है। 

जगद्गुरु शंकराचार्य ने 'सौंदर्य लहरी 'में पराशक्ति जगदम्बिका का
 नखशिख वर्णन किया है। ब्रह्माण्ड की समस्त ऊर्जा की स्त्रोत देवी हैं।
Parashakti is resplendant in HER DIVINE
Magnificent Glory. Worshiping श्रीयंत्र awakens 

the Kundalini.
श्रीयंत्र साधना से कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है।
कुंडलिनी शक्ति ७ चक्रों को भेदकर ऊपर उठती है।
 १) मूलाधार ~ मूलाधार चक्र चार पंखुड़ियों वाले कमल के फूल के समान
 दिखाई देता है। यह चतुर्भुज के आकार का है।
 जिसके अन्दर एक त्रिकोण (योनि का प्रतिरूप) होता है।
 त्रिकोण में एक शिवलिंग अवस्थित रहता है।
जिस पर सर्प के आकार की कुण्डलिनी लिपटी रहती है।
मूलाधार चक्र में चार नाड़ियां मिलती हैं। इसमें चार ध्वनियां –
 वं, शं, षं, सं होती हैं और यह ध्वनि मस्तिष्क और हृदय के भागों को
 कंपित करती हैं। शरीर का स्वास्थ्य इन्हीं ध्वनियों पर निर्भर करता है।
 यह एडरीनल ग्रंथि को नियंत्रित रखता है।
रस, रूप, गंध, स्पर्श, भावों व शब्दों का मेल है।  
२) स्वाधिष्ठान ~इसके देवता श्री ब्रह्मा और सरस्वती हैं। इसका बीज मंत्र 'वं 'है।
  ६ नाड़ियां आपस में मिल कर ६  पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की
 रचना करती हैं, वे दल की द्योतक है। फूल के भीतर अलग-अलग आकार के
 दो वृत्तों से बना सफेद अर्द्ध चन्द्र स्थित होता है।
 आकार गोल और रंग नारंगी होता है। अर्द्ध चन्द्र इसका यंत्र है।
 इस चक्र में ध्वनियां – बं, भं, मं, यं, रं, लं आती रहती हैं।

स्वाधिष्ठान चक्र अवचेतना और भावना से सम्बंधित है।
 यह मूलाधार चक्र से सम्पर्क रखता है।
स्वाधिष्ठान चक्र में संस्कार सुषुप्त रहते हैं और मूलाधार में वे अभिव्यक्त होते हैं।

३)मणिपुर ~ मणिपुर चक्र नाभि में स्थित होता है।
इसमें १०  पंखुड़ियों वाला कमल होता है जिस का रंग पीला होता है।
 
चिन्ह नीचे की ओर इंगित करता त्रिकोण है,
 जिसमें तीनो तरफ स्वास्तिक बना होता है।
 इस चक्र में ध्वनियां – डं, ढं, तं, थं, धं, नं, पं, फं, बं निकलती हैं।
यह अग्नि तत्व प्रधान है और सूर्य तथा अहंकार का द्योतक है।
यह चक्र सूर्य की भांति पूरे शरीर में प्राण ऊर्जा का संचार करता है
तथा पोषण करता है। यह आमाशय, यकृत, पित्ताशय,
अग्न्याशय और अधिवृक्क से सम्बंधित है।
 
इसके देवता श्री विष्णु लक्ष्मी हैं और बीज मंत्र 'रं 'है।

४)अनाहत (ह्रदय ) ~ इस चक्र में १२  पंखुड़ियां वाला कमल होता हैं।
 इस स्थान पर १२  नाड़ियां मिल कर १२  पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की
 आकृति बनाती हैं। चिन्ह दो त्रिकोण हैं, एक नीचे इंगित करता है
तो दूसरा ऊपर इंगित करता है। यह मध्य चक्र है।
अर्थात तीन चक्र इसके ऊपर और तीन चक्र इसके नीचे होते हैं।
इसका रंग हरा होता है, द्वितीयक रंग गुलाबी है।
इसका व्यास छः सेंटीमीटर होता है।
इस चक्र से ध्वनियां – कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, ञं, टं, ठं निकलती हैं। 
इस चक्र की देवी श्री जगदम्बा माँ हैं और बीज मंत्र 'यं 'है।
५) विशुद्ध चक्र  आज्ञाचक्र ( दो भौंहों के मध्य बिंदु में स्थित)  ~
 इसमें १६  पंखुड़ियों वाला कमल होता है। इसका रंग आसमानी होता है और चिन्ह अर्द्धचंद्र है।
 इसका व्यास छः सेंटीमीटर होता है।
इस चक्र में अ से अः तक १६  ध्वनियां निकलती हैं।यह चक्र आकाश तत्व प्रधान है। इस तत्व पर मन को एकाग्र करने से
 मन आकाश तत्व के समान शून्य और शुद्ध हो जाता है। 
इस चक्र के देवता श्री कृष्ण राधा हैं और बीज मंत्र 'हं 'है। 
६) आज्ञाचक्र : गुरु ग्रंथि : शिव नेत्र : दिव्य  चक्षु :
इसकी दो पंखुड़ियां आत्मा-परमात्मा, तर्क-वितर्क,
पिनियल-पिट्यूट्री, इड़ा-पिंगला और नर-नारी को इंगित करती है।
सारी द्विविधता (Duality) यहीं मिलती है।
 इसमे एक त्रिकोण है, जो योनि का द्योतक है।
इस त्रिकोण में एक श्वेत लिंग है।
इसका रंग गहरा नीला होता है।
मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव करती है।
 यह हार्मोन सोने या जागने की क्रिया को नियंत्रित करता है। 
इस स्थान पर पिनियल और पिट्यूट्री ग्रंथियां मिलती हैं।मूलाधार से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना अलग-अलग प्रवाहित होती हुई
इसी चक्र पर मिलती हैं और चैतन्यता की एक धारा के रूप में सहस्रार को जाती हैं।
 इसलिए योग में इस चक्र को त्रिवेणी भी कहा गया है।
 योग ग्रंथ में इसके बारे में कहा गया है। ।

इड़ा भागीरथी गंगा पिंगला यमुना नदी।
तर्योमध्यगत नाड़ी सुषुम्नाख्या सरस्वती।।
इड़ा को गंगा, पिंगला को जमुना और सुषुम्ना नाड़ी को सरस्वती कहा गया है। योगियों को ईश्वरीय अन्तरदृष्टि और श्रुतिप्रकाश इसी चक्र से मिलता है।
 यहीं पहुंच कर मनुष्य को मोक्ष का द्वार दिखाई देता है।
यहीं चरमानन्द, अतिसंवेदन-बोध, सूक्ष्म दृष्टि, अतीन्द्रिय श्रवण,
अन्तरज्ञान, असाधारण शक्तियां प्राप्त होती हैं।
इसी छठे चक्र में मनुष्य को दूरबोध (Telepathy)  पुनर्जन्म का ज्ञान होता है।
आज्ञा चक्र मन और बुद्धि का मिलन स्थान है।
यह उर्ध्व शीर्ष बिन्दु ही मन का स्थान है। इसे रुद्र ग्रंथि कहते हैं।
 सुषुम्ना मार्ग से आती हुई कुण्डलिनी शक्ति का अनुभव योगी को
 यहीं आज्ञा चक्र में होता है। 
संवेदनाओं और पांच तत्वों के परे
छठा चक्र सूर्य और चन्द्रमा से प्रभावित होता है।
इसकी धातुएं स्वर्ण और रजत हैं। इसका बीज मंत्र 'शं 'है।

जिसे pineal gland कहते हैं - 

यहां तक कुंडलिनी शक्ति इड़ा व पिंगला तथा मध्य में स्थित
 सुषुम्ना नाड़ी से उठती हुई ऊपर की दिशा में आगे बढ़ती है।
मनुष्य के शरीर में 'pineal gland 'अति महत्त्वपूर्ण स्थान है।

Pineal Gland पर एक अति महत्त्वपूर्ण लिंक  :
http://powerthoughtsmeditationclub.com/the-pineal-gland-symbol-of-manifestation-the-sri-yantra/
आज्ञा चक्र से आगे बढ़कर, कुण्डिलिनी शक्ति, "सहस्त्रसार "
मस्तिष्क के ऊपर पहुँचती है।
कुंडलिनी के सहस्त्रसार पहुँचने से, आत्मा का ब्रह्माण्ड से ऐक्य स्थापित होता है।
सहस्त्रसार : सहस्रार चक्र मस्तिष्क के ऊपर ब्रह्मरंध में उपस्थित
 ६  सेंटीमीटर व्यास के एक अध खुले हुए कमल के फूल के समान होता है।
ऊपर से देखने पर इसमें कुल ९७२  पंखुड़ियां दिखाई देतीं  है।
इसमें नीचे ९६०  छोटी-छोटी पंखुड़ियां और उनके ऊपर मध्य में
 १२  सुनहरी पंखुड़ियां सुशोभित रहती हैं।
इसे हजार पंखुड़ियों वाला कमल कहते हैं।
इसका चिन्ह खुला हुआ कमल का फूल है जो असीम आनन्द के केन्द्र होता है।
इसमें इंद्रधनुष के सारे रंग दिखाई देते हैं लेकिन प्रमुख रंग बैंगनी होता है।
 इस चक्र में अ से क्ष तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती है।
 पिट्यूट्री और पिनियल ग्रंथि का आंशिक भाग इससे सम्बंधित है।
 यह मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा और दाई आंख को नियंत्रित करता है।
यह आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, एकीकरण, स्वर्गीय अनुभूति के विकास का
 मनोवैज्ञानिक केन्द्र है।
 आत्मा का उच्चतम स्थान है।
 
इसका विस्तार, रंग, गति, आभा और बनावट देख कर व्यक्ति की चैतन्यता,
 आध्यात्मिक योग्यता और अन्य चक्रों से समन्वय का अनुमान लगाया जा सकता है। अच्छा योगाभ्यास करने वाले साधक का चक्र ओजस्वी और चमकदार होता है।
यह ईश्वरधाम और मोक्ष का द्वार है। साधक अपनी कुण्डलिनी जाग्रत कर लेते हैं तो कुण्डलिनी
बाल रूप बाला त्रिपुरा सुन्दरी के रूप में ऊपर उठती है।
थोड़ा और ऊपर पहुंचने पर वह यौवन को प्राप्त कर
 राजराजेश्वरी का रूप धरती है और सहस्रार चक्र तक
वह संपूर्ण स्त्री ललिताम्बिका का रूप धर लेती है।
जो साधक कुण्डलिनी को सहस्रार तक ले कर आते हैं,
वे परमानन्द को प्राप्त करते हैं, जिसकी सर्वोच्च अवस्था समाधि है।
 कुण्डलिनी के इस जागरण को शिव और शक्ति का मिलन कहते हैं।
 इस मिलन से आत्मा का अस्तित्व खत्म हो जाता है
वह परमात्मा में लीन हो जाती है। 
यह वास्तव में चक्र नहीं है
 बल्कि साक्षात तथा सम्पूर्ण परमात्मा और आत्मा है।
इसके देवता श्री भगवान शिव हैं और बीज मंत्र 'ॐ 'है।
प्रत्येक चक्र को एक विशेष रंग में प्रदर्शित किया जाता है एवं उसमे
 कमल की एक निश्चित संख्या में पंखुड़ियां होती हैं।
हर पंखुड़ी में संस्कृत का एक अक्षर लिखा होता है।
 इन अक्षरों में से एक अक्षर उस चक्र की मुख्य ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है।
ये चक्र प्राण ऊर्जा के कैंद्र हैं। यह प्राण ऊर्जा कुछ वाहिकाओं में बहती है,
 जिनको नाड़ियां कहते हैं। सुषुम्ना एक मुख्य नाड़ी है जो मेरुदन्ड में
अवस्थित रहती है, दो पतली इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियां हैं
 जो मेरुदन्ड के समानान्तर क्रमशः बाई और दाहिनी तरफ अपस्थित रहती हैं।
इड़ा और पिंगला मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों से संबन्ध बनाये रखती हैं।
पिंगला बहिर्मुखी सूर्य नाड़ी है जो बाएं गोलार्ध से संबन्ध रखती है।
 इड़ा अन्तर्मुखी चंद्र नाड़ी है जो दांयें गोलार्ध से संबन्ध रखती है। 
कुंडलिनी चक्र के लिए इमेज परिणाम

यह सप्त चक्र, संस्कृत देववाणी के बावन ५२ मूलाक्षरों के प्रतीक हैं।
५२ मूलाक्षर पुनः 
एक ॐ कार में विलीन हो जाते हैं।
 यह word sound - ॐ है।  

प्रश्न : मन्त्र क्या हैं ?
उत्तर :  मन्त्र कविता है  वाणी है  या पद्य स्वरूप हैं। वे  हमें शरीर के बंधन से
           मुक्ति के द्वार तक ले चलने में सहायक होते  हैं। 

Q : What are MANTRAS ?
A: " Mantra are set as speech, poem or verse
which set us free of 
physical bondage
they help us to think, meditate, & realize 

our potential & help us from Being to Becoming ! "
प्रश्न : श्लोक क्या हैं ? वे  २ पंक्तियों के होते हैं तथा  छंद बद्ध होते हैं।
वैदिक छंद :  अतिजगती, गायत्री, त्रिष्टुप, द्विपदा विराट, धृति, पंक्ति,प्रस्तार पंक्ति,
               बृहती, महाबृहती, श्कचरी, अतिशक्वरी, उष्णिक्, अत्यष्टि, अनुष्टुप
                  इत्यादि हैं।  उदाहरण : अनुष्टुप छंद   ऋग्वेद, वाल्मिकी रामायण,
                   महाभारत इत्यादि अनेक ग्रंथों में प्रयुक्त हुआ है। 
Q: what is a SHLOKA ?
A: Shloka is made up of 2 lines + set to a meter. 

Here are some exampleas of meters from
 the Vedic time.
Ati Jagti, Gayatri, Trishtup,Dwipada,Virat,
Dhruti,Pankti
Prastar Pankti, Brihati,Maha Brihati,
Shakchri, Ati Shakchari
Ushnik, Atyashti, Anushtup etc.
Anushtup Meter is used in
Rig Veda, Valmiki Ramayan & Mahabharat
& many old Texts
The Unseen, the Omnipotent, the unexplainable
 or GOD 
can not be explained,
comprehended nor understood 

with our feeble thoughts, ideas, and limited language
nor can we humans  rationalize precisely
or set in expression 
which is most difficult to define
or comprehend with our logic 

or with limitations of our human mind.
If I succeed in my humble explanation
of this most complex
ENTITY of  " SHREE  YANTRA "
here & now then me & you ,
may get NIRVANA here & now !
Let us PRAY & invoke the
Blessings of " THAT ONE
 " = सच्चिदानंद = SAT CHITT ANAND
 ~~~~ * THAT ART THOU =तत त्वं असि।* ~~ ~ 
 ॐ तत सत ! ॐ।  
~~ लावण्या : Lavanya

 


 

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