प्रवासी साहित्य पर केंद्रित पत्रिका में लावण्या शाह का साक्षात्कार ~
हिंदी -साहित्य की सुपरिचित कवयित्री लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि
स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में ओहायो प्रांत , उत्तर अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी. ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी ने प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक ”महाभारत” के लिये कुछ दोहे भी लिखे हैं । इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं। इनकी काव्य पुस्तक “फिर गा उठा प्रवासी” प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति ”प्रवासी के गीत” को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
हिंदी -साहित्य की सुपरिचित कवयित्री लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि
स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में ओहायो प्रांत , उत्तर अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी. ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी ने प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक ”महाभारत” के लिये कुछ दोहे भी लिखे हैं । इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं। इनकी काव्य पुस्तक “फिर गा उठा प्रवासी” प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति ”प्रवासी के गीत” को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
उपन्यास -’ सपनों के साहिल ' प्रकाशित हो चुका है।
उपन्यास : सपनों के साहिल प्रकाशिका हैं
श्रीमती गायत्री राकेश एम. ए. एम. फिल.
गत वर्ष सुन्दर ~ काण्ड : भावानुवाद का प्रकाशन हुआ।
उपन्यास : सपनों के साहिल प्रकाशिका हैं
श्रीमती गायत्री राकेश एम. ए. एम. फिल.
पता : 'कविता 'भारती नगर , मैरिस रोड, अलीगढ़ - २०२००१
संपादक : प्रो . शिवकुमार शांडिल्य
पूर्व अध्यक्ष , हिन्दी विभाग , ए. एम. यू. अलीगढ़
मंगलाभवन, शताब्दी नगर, अलीगढ़
कहानी संग्रह ‘ अधूरे अफ़साने ‘ प्रकाशित हो चुकी है। गत वर्ष सुन्दर ~ काण्ड : भावानुवाद का प्रकाशन हुआ।
आगामी "अमर युगल पात्र "पुस्तक शीघ्र प्रकाशित होगी।
जीवन से जुड़े 'संस्मरण ' प्रकाशाधीन हैं।
जीवन से जुड़े 'संस्मरण ' प्रकाशाधीन हैं।
प्रश्न—लावण्या जी आप कवयित्री कैसे बनीं ?
उत्तर– कवियित्री कैसे बनी प्रश्न के उत्तर में यही कह सकती हूँ कि , उस एक अज्ञात का ही किया – करना है जो सब कुछ घटित होता है इस सृष्टि मे उसकी डोर किसी ओर के हाथ मे है !
गुजरात के संत कवि नरसिंह मेहता ने कहा , ” हूँ करूं , हूँ करूं , ए ज अज्ञानता शकट नो भार जेम श्वान ताणे ”
जिसे हिन्दी मे कहें तो, ” मैं ने किया, मैं ने किया , यह अज्ञानताभरे वचन हैं। जैसे एक बैलगाडी के नीचे चल रहा श्वान या कुकर यह समझे कि बैल गाडी, उसकी वजह से चल रही है “
उत्तर– कवियित्री कैसे बनी प्रश्न के उत्तर में यही कह सकती हूँ कि , उस एक अज्ञात का ही किया – करना है जो सब कुछ घटित होता है इस सृष्टि मे उसकी डोर किसी ओर के हाथ मे है !
गुजरात के संत कवि नरसिंह मेहता ने कहा , ” हूँ करूं , हूँ करूं , ए ज अज्ञानता शकट नो भार जेम श्वान ताणे ”
जिसे हिन्दी मे कहें तो, ” मैं ने किया, मैं ने किया , यह अज्ञानताभरे वचन हैं। जैसे एक बैलगाडी के नीचे चल रहा श्वान या कुकर यह समझे कि बैल गाडी, उसकी वजह से चल रही है “
सो, हम क्या करेंगें, करवानेवाला तो वही एक – अज्ञात - प्रभु है !
प्रश्न—आपको क्या अपनी कोई प्रारंभिक रचना याद है ? याद है तो सुनाईये।
उत्तर– : प्रारंभिक रचनाओं मे से एक याद आ रही है,
चाँद मेरा साथी है..
और अधूरी बात सुन रहा है,
चुपके चुपके, मेरी सारी बात!
चाँद मेरा साथी है..
चाँद मेरा साथी है..
चाँद चमकता क्यूँ रहता है ?
क्यूँ घटता बढता रहता है ?
क्योँ उफान आता सागर मेँ ?
क्यूँ जल पीछे हटता है ?
चाँद मेरा साथी है..
क्यूँ घटता बढता रहता है ?
क्योँ उफान आता सागर मेँ ?
क्यूँ जल पीछे हटता है ?
चाँद मेरा साथी है..
और अधूरी बात
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात!
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात!
क्योँ गोरी को दिया मान?
क्यूँ सुँदरता हरती प्राण?
क्योँ मन डरता है, अनजान?
क्योँ परवशता या अभिमान?
क्यूँ सुँदरता हरती प्राण?
क्योँ मन डरता है, अनजान?
क्योँ परवशता या अभिमान?
चाँद मेरा साथी है..
और अधूरी बात
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात!
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात!
क्यूँ मन मेरा है नादान ?
क्यूँ झूठोँ का बढता मान?
क्योँ फिरते जगमेँ बन ठन?
क्योँ हाथ पसारे देते प्राण?
क्यूँ झूठोँ का बढता मान?
क्योँ फिरते जगमेँ बन ठन?
क्योँ हाथ पसारे देते प्राण?
चाँद मेरा साथी है…
और अधूरी बात
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात! …
और अधूरी बात
सुन रहा है, चुपके चुपके,
मेरी सारी बात! …
प्रश्न—साहित्य की किस – किस विधा में आप लिखती है ?
कौन सी विधा आपको अधिक प्यारी है।
उत्तर– यात्रा वृन्तांत , संस्मरण , कहानी , कविता , निबंध इत्यादि सभी लिखा है और जो भी लिखा है। सच्ची अनुभूति और अभिव्यक्ति से ही संभव हुआ है। विधा कोई भी हो, अपनी बात कहने की प्रक्रिया आत्म संतुष्टि और सुख का कारण होने के कारण, सदा ही, अच्छी और सुखकर लगती है ।
कौन सी विधा आपको अधिक प्यारी है।
उत्तर– यात्रा वृन्तांत , संस्मरण , कहानी , कविता , निबंध इत्यादि सभी लिखा है और जो भी लिखा है। सच्ची अनुभूति और अभिव्यक्ति से ही संभव हुआ है। विधा कोई भी हो, अपनी बात कहने की प्रक्रिया आत्म संतुष्टि और सुख का कारण होने के कारण, सदा ही, अच्छी और सुखकर लगती है ।
प्रश्न–पंड़ित नरेन्द्र शर्मा जी (एक महान गीतकार) की बेटी होना आपको कैसा महसूस होता है ?
उत्तर—शायद यह एक सत्य मेरे नन्हें से जीवन का परम सौभाग्य रहा है ऐसा महसूस करती हूँ ।
उत्तर—शायद यह एक सत्य मेरे नन्हें से जीवन का परम सौभाग्य रहा है ऐसा महसूस करती हूँ ।
प्रश्न — आपके पिताश्री नरेन्द्र शर्मा महान गीतकार थे। उनका कोई ऐसा गीत जिसने आपके मन पर अमिट प्रभाव छोड़ा हो ।
उत्तर– पूज्य पापा जी के कई सारे गीत, मेरे मन मे समाये हुए हैं परंतु इस एक गीत को सुन, मैं बहुत ज्यादा भावुक हो जाती हूँ …शायद आपने भी सुना हो ….फिल्म है 'भाभी की चूडीयां 'और मशहूर अदाकारा मीना कुमारी जी अंतिम साँसें गिन रहीं हैं। उनके सामने बैठे देवर अपनी भाभी माँ के लिए गा रहे हैं यह गीत जिसे स्वर दिया, स्वर्गीय श्री मुकेश चन्द्र जी ने, शब्द हैं
‘ दर भी था , थीं दिवारें भी , तुमसे ही घर , घर कहलाया …
माँ , तुमसे , घर , घर कहलाया ….’
लिंक : http://www.youtube.com/ watch?v=v323AKmk5E0
उत्तर– पूज्य पापा जी के कई सारे गीत, मेरे मन मे समाये हुए हैं परंतु इस एक गीत को सुन, मैं बहुत ज्यादा भावुक हो जाती हूँ …शायद आपने भी सुना हो ….फिल्म है 'भाभी की चूडीयां 'और मशहूर अदाकारा मीना कुमारी जी अंतिम साँसें गिन रहीं हैं। उनके सामने बैठे देवर अपनी भाभी माँ के लिए गा रहे हैं यह गीत जिसे स्वर दिया, स्वर्गीय श्री मुकेश चन्द्र जी ने, शब्द हैं
‘ दर भी था , थीं दिवारें भी , तुमसे ही घर , घर कहलाया …
माँ , तुमसे , घर , घर कहलाया ….’
लिंक : http://www.youtube.com/
प्रश्न— आपने बी .आर . चोपड़ा के महाभारत सीरियल में कुछ दोहे लिखे हैं । पाठकों के मनोरंजन के लिए कृपया उस के एक – दो दोहे सुनाईये ।
उत्तर— : मैंने , ये दोहे लिखकर दिए जिन्हें , महाभारत टी वी धारावाहिक में , शामिल किया गया । हाँ, मेरा नाम , कहीं शीर्षक में ना ही देखा होगा आपने । परन्तु , मुझे आत्म संतोष है इस बात का कि मैं अपने दिवंगत पिता के कार्य में अपने श्रद्धा सुमन रूपी , ये दोहे , पूजा के रूप में , चढ़ा सकी ।
ये एक पुत्री का पितृ – तर्पण था।
-प्रसंग था - द्रौपदी और सुभद्रा का सर्व प्रथम मिलन टीवी धारावाहिक में यह दोहा लिया गया था।
” गंगा यमुना सी मिलीं , धाराएं अनमोल ,
द्रवित हो उठीं द्रौपदी , सुनकर मीठे बोल “
और सबसे प्रथम दोहा जो सुभद्रा हरण के प्रसंग पर लिखा था उसके शब्द हैं ।
‘ बिगड़ी बात संवारना , सांवरिया की रीत ,
पार्थ सुभद्रा मिल गए , हुई प्रणय की जीत
लिंक -
http://www.youtube.com/watch? v=ufGYTrmb3Gc&feature=player_ embedded
पार्थ सुभद्रा मिल गए , हुई प्रणय की जीत
लिंक -
http://www.youtube.com/watch?
जरासंध – वध प्रसंग पर
'अभिमानी के द्वार पर, आए दीन दयाल,
स्वयं अहम् ने चुन लिया, अपने हाथों काल “
'अभिमानी के द्वार पर, आए दीन दयाल,
स्वयं अहम् ने चुन लिया, अपने हाथों काल “
द्रौपदी चीर हरण प्रसंग पर - ” सत असत सर्वत्र हैं , अबला सबला होय
नारायण पूरक बनें, पांचाली जब रोये “
मत रो बहना द्रौपदी , जीवन है संग्राम
धीरज धर , मन शांत कर , सुधरेंगें , बिगड़े काम '
ये दोहा भी आपने धारावाहिक में सुना होगा जो श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हुए पांडवों के वनवास के समय मिलने आते हैं तब कहते हैं
कीचक वध प्रसंग पर
नारायण पूरक बनें, पांचाली जब रोये “
मत रो बहना द्रौपदी , जीवन है संग्राम
धीरज धर , मन शांत कर , सुधरेंगें , बिगड़े काम '
ये दोहा भी आपने धारावाहिक में सुना होगा जो श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हुए पांडवों के वनवास के समय मिलने आते हैं तब कहते हैं
कीचक वध प्रसंग पर
” चाहा छूना आग को गयी कीचक की जान,
द्रौपदी के अश्रू को मिला आत्म -सम्मान ! “
भीष्म पितामह जब घायल हुए उस प्रसंग पर एक दोहा लिखा था ,
जो यूँ है, [ ये सिर्फ़ मेरी डायरी में कैद है ] ,
‘ जानता हूँ, बाण है यह प्रिय अर्जुन का,
नहीं शिखंडी चला सकता एक भी शर ,
बींध पाये कवच मेरा किसी भी क्षण,
बहा दो संचित लहू, तुम आज सारा …’
द्रौपदी के अश्रू को मिला आत्म -सम्मान ! “
भीष्म पितामह जब घायल हुए उस प्रसंग पर एक दोहा लिखा था ,
जो यूँ है, [ ये सिर्फ़ मेरी डायरी में कैद है ] ,
‘ जानता हूँ, बाण है यह प्रिय अर्जुन का,
नहीं शिखंडी चला सकता एक भी शर ,
बींध पाये कवच मेरा किसी भी क्षण,
बहा दो संचित लहू, तुम आज सारा …’
प्रश्न– क्या कविता छंद में लिखी जानी चाहिए ?
उत्तर— : ‘ कविता ‘ , सच कहूं तो , स्वत : उभरती है और कविता अगर छंद मे हो तो अच्छी बात है पर महाप्राण निराला जी ने हिन्दी भाषा की गरिमा बढाने वाली कविताओं से, छंद मुक्त काव्य का प्रसाद दिया है। जो आज भी उनकी रम्य भव्यता लिए, मनीषा को मुग्ध करने मे सक्षम है।
उत्तर— : ‘ कविता ‘ , सच कहूं तो , स्वत : उभरती है और कविता अगर छंद मे हो तो अच्छी बात है पर महाप्राण निराला जी ने हिन्दी भाषा की गरिमा बढाने वाली कविताओं से, छंद मुक्त काव्य का प्रसाद दिया है। जो आज भी उनकी रम्य भव्यता लिए, मनीषा को मुग्ध करने मे सक्षम है।
सो , सच्चा काव्य वही है जो सदा सर्वदा ह्रदय को छू लेता है। अर्थ लाघव भाषा के प्राण हैं और काव्य है , प्राणों का कम्पन !
प्रश्न– कविता में कई बदलाव आए हैं. कभी वह प्रयोगवादी बनी और कभी अकविता आजकल गज़ल का वर्चस्व है। गज़लकारों की भीड़ ही भीड़ है। इस भीड़ में कौन-कौन से गज़लकार अपनी राह बनाते हुए आपको दिखाई देते हैं ?
उत्तर –ग़ज़ल विधा मे लिखने वाले कइयों की ग़ज़लें बेहद खूबसूरत हैं जिन्हें पढ़कर या अगर किसी ने उसे आवाज़ दे कर संजोया हो तो दिल को बड़ा सुकून मिला है …जैसे , श्री राजेन्द्रनाथ रहबर जी के अलफ़ाज़ को रोशनी देनेवाले जगजीत सिंह की अदायगी दिल थाम के …सुनें …
लिंक : http://www.youtube.com
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प्रश्न—- हिन्दी के कुछ विद्वान हिन्दी की दशा और दिशा की बात करतें हैं लेकिन वे स्वयं लम्बे-लम्बे पत्र अंग्रेजी में लिखते हैं इससे बढकर हिन्दी की और क्या दुर्दशा होगी ? इस बारे में आपका क्या कहना है ?
उत्तर – : हिन्दी भाषा को भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित करना अत्यंत आवश्यक है। हिन्दी भाषीय प्रान्तों मे भी अंग्रेजी हुकूमत और आम जनता की हिन्दी के प्रति उपेक्षा व उदासीनता की भावना पनप रही है जी के कारण आज हिन्दी की ये दशा है जो हम ऐसे प्रश्न पूछ रहे हैं ।
बाजारवाद , भूमंडलीकरण वैश्विक दूर संचार के विविध उपकरणों की पहुँच ने , एक तरह से , लोगों को स्व- केन्द्रीत और पहले से अधिक , स्वार्थ रत बनाया है। साथ ही साथ हम या आप , किसी पर , अपनी बात मनवाने के लिए दबाव तो कर नहीं सकते हां हिन्दी भाषा जब वित्त व्यवस्था के संसाधनों से जुड़ेगी और मान्यता प्राप्त कर लेगी उस दिन, वास्तव में भारत का स्वर्णोदय भी होगा उस मे संशय नहीं ।
बाजारवाद , भूमंडलीकरण वैश्विक दूर संचार के विविध उपकरणों की पहुँच ने , एक तरह से , लोगों को स्व- केन्द्रीत और पहले से अधिक , स्वार्थ रत बनाया है। साथ ही साथ हम या आप , किसी पर , अपनी बात मनवाने के लिए दबाव तो कर नहीं सकते हां हिन्दी भाषा जब वित्त व्यवस्था के संसाधनों से जुड़ेगी और मान्यता प्राप्त कर लेगी उस दिन, वास्तव में भारत का स्वर्णोदय भी होगा उस मे संशय नहीं ।
प्रश्न—आजकल हिन्दी में युवा लेखकों की स्थिति क्या है ? क्या वे ऐसा साहित्य रच रहे हैं जैसा कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास ,बिहारीलाल, भारतेन्दुहरिश्चन्द्र ,रामचंद्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , नरेन्द्र शर्मा इत्यादि-इत्यादि साहित्य रचे गए हैं ?
उत्तर— : प्रत्येक रचनाकार अपने समय और समाज की उपज है और उसी समाज और समय से जुडा हुआ उसका अपना अस्तित्त्व भी होता है।
उत्तर— : प्रत्येक रचनाकार अपने समय और समाज की उपज है और उसी समाज और समय से जुडा हुआ उसका अपना अस्तित्त्व भी होता है।
आपने जो नाम ऊपर लिखे हैं वे सभी प्रात : स्मरणीय व प्रणम्य हैं ।आजकल के युवा , आज के समय को अपने अनुभव से तराशकर , पेश कर रहे हैं जो उनकी सोच समझ पर निर्भर है। उनके सामाजिक परिवेश तथा उनके निजी अनुभवों से उभरा बिम्ब है ये साहित्य,कि जिसकी स्थिति तो अच्छी ही है। देखिये न, आजकल के आपाधापी और कोलाहल भरे युग मे भी, बांसुरी की टेर सरीखा कोई काव्य, कोई गीत , कोई छंद उभर कर आ ही आ जाता है । ये मेरी समझ से , युवा रचनाशील पीढी की उपलब्धि ही कहलायेगी ।
प्रश्न–अमेरिका में हिन्दी भाषा की उन्नति को लेकर उसका कैसा भविष्य दिखाई देता है ?
उत्तर– : इस बात से संतोष है कि, यहां बसे भारतीय भरसक प्रयास कर रहे हैं कि हिन्दी भाषा जीवित रहे, फूले – फले ! …
कवि सम्मलेन, हिन्दी नृत्य नाटिकाएँ, हिन्दी फिल्मों पर बच्चों द्वारा किये नाच गाने ये सभी हिन्दी को, भारतीय प्रवासी समाज के सम्मुख रखने मे सफल हुए हैं।कई विश्वविद्यालयों मे हिन्दी एक विषय है और पढ़ाया जा रहा है । कई सारे अध्यापक हैं जो कड़ी मेहनत करते हैं ।
कई घरों मे , मंदिरों मे, हिन्दी भाषा पढ़ाने का काम भी हो रहा है । कई हिन्दी पत्रिकाएँ भी निकलतीं हैं
जिनमें से ‘ विश्वा ‘ त्रैमासिक के कुछ अंकों का सम्पादन मैंने किया है और मेरा सहयोग दिया है।
मैं , अपना हिन्दी ब्लॉग ” लावण्यम – अंतर्मन ” नियमित रूप से लिखती हूँ और अपने अनुभवों को साझा करती हूँ ..
लिंक : http://www.lavanyashah.com
उत्तर– : इस बात से संतोष है कि, यहां बसे भारतीय भरसक प्रयास कर रहे हैं कि हिन्दी भाषा जीवित रहे, फूले – फले ! …
कवि सम्मलेन, हिन्दी नृत्य नाटिकाएँ, हिन्दी फिल्मों पर बच्चों द्वारा किये नाच गाने ये सभी हिन्दी को, भारतीय प्रवासी समाज के सम्मुख रखने मे सफल हुए हैं।कई विश्वविद्यालयों मे हिन्दी एक विषय है और पढ़ाया जा रहा है । कई सारे अध्यापक हैं जो कड़ी मेहनत करते हैं ।
कई घरों मे , मंदिरों मे, हिन्दी भाषा पढ़ाने का काम भी हो रहा है । कई हिन्दी पत्रिकाएँ भी निकलतीं हैं
जिनमें से ‘ विश्वा ‘ त्रैमासिक के कुछ अंकों का सम्पादन मैंने किया है और मेरा सहयोग दिया है।
मैं , अपना हिन्दी ब्लॉग ” लावण्यम – अंतर्मन ” नियमित रूप से लिखती हूँ और अपने अनुभवों को साझा करती हूँ ..
लिंक : http://www.lavanyashah.com
मुझ जैसे और भी कई समर्पित हिन्दी प्रेमी हैं अमरीका में परंतु सवाल है अगली पीढी का। क्या आनेवाली नस्लें भी हमारी हिन्दी से हमरे जितना प्रेम करेगी ?
इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य ही बतलायेगा । अन्यथा , अमरीका मे अमरीकी प्रयोग मे प्रचलित अंग्रेज़ी ( जो ब्रिटेन की अंग्रेज़ी से भिन्न है ) उसी का बोलबाला और वर्चस्व है । मैं , सत्य – वक्ता हूँ इसी कारण जो देखा है वही कह रही हूँ। भविष्य ही अपना निर्णय लेगा जिसे आप और हम देखेंगें। हमारे प्रयास जारी हैं।
प्रश्न– अंत में एक व्यक्तिगत प्रश्न-आप लावण्या शर्मा से लावण्या शाह कब और कैसे हुईं ?
उत्तर–: सन १९७४ के ९ नवम्बर के दिन आर्यसमाज मंदिर मे, मेरी गुजराती स्कूल के सहपाठी , दीपक शाह से , विवाह हुआ और मैं ‘ कुमारी लावण्या नरेंद्र शर्मा ‘ से , श्रीमती लावण्या दीपक शाह कहलाने लगी।
मेरे पति, दीपक जी और मैं, पहली कक्षा से, एक ही स्कूल में साथ साथ पढ़कर बड़े हुए हैं । मेरी अम्मा गुजराती परिवार से थीं और पापा ने हम ३ बहनों को गुजराती माध्यम की पाठशाला मे शिक्षा ग्रहण करने भेजा था। उनका कहना था, ‘ मातृभाषा सीख लो, तो आगे चल कर तुम्हें, विश्व की हर भाषा आसान लगेगी ‘ पापा हम लोगों से हमेशा हिन्दी भाषा मे बातचीत किया करते थे और हमने अम्मा से गुजराती और पापा जी से हिन्दी में बोलना , होश सम्भालने के साथ ही सीख लिया था। खैर ! वह दिन कुछ और आज का दिन है भी कुछ और है वर्तमान है, आज का दौर है !
उत्तर–: सन १९७४ के ९ नवम्बर के दिन आर्यसमाज मंदिर मे, मेरी गुजराती स्कूल के सहपाठी , दीपक शाह से , विवाह हुआ और मैं ‘ कुमारी लावण्या नरेंद्र शर्मा ‘ से , श्रीमती लावण्या दीपक शाह कहलाने लगी।
मेरे पति, दीपक जी और मैं, पहली कक्षा से, एक ही स्कूल में साथ साथ पढ़कर बड़े हुए हैं । मेरी अम्मा गुजराती परिवार से थीं और पापा ने हम ३ बहनों को गुजराती माध्यम की पाठशाला मे शिक्षा ग्रहण करने भेजा था। उनका कहना था, ‘ मातृभाषा सीख लो, तो आगे चल कर तुम्हें, विश्व की हर भाषा आसान लगेगी ‘ पापा हम लोगों से हमेशा हिन्दी भाषा मे बातचीत किया करते थे और हमने अम्मा से गुजराती और पापा जी से हिन्दी में बोलना , होश सम्भालने के साथ ही सीख लिया था। खैर ! वह दिन कुछ और आज का दिन है भी कुछ और है वर्तमान है, आज का दौर है !
आज परिवार मे अमरीकी दामाद ब्रायन भी शामिल है और अब मेरे परिवार में , हिन्दू जाट परिवार की बहूरानी भी आ गयीं हैं और १३ वर्ष के बालक ' नोआ 'तथा ५ वर्ष के ओरायन "की मैं नानी व् दादी हूँ।
जीवन मे आज भी बहुत कुछ नया अनुभव कर रही हूँ और सीख रही हूँ ..
आपने मुझे आज अवसर प्रदान किया और मेरी बातों को सुना जिसके लिए
जीवन मे आज भी बहुत कुछ नया अनुभव कर रही हूँ और सीख रही हूँ ..
आपने मुझे आज अवसर प्रदान किया और मेरी बातों को सुना जिसके लिए
आपका … सच्चे ह्रदय से आभार।
विनीत
– लावण्या शाह
विनीत
– लावण्या शाह